
उसके दर्द की ख़ामोशी…**
अवंतिका जैसे-तैसे अपने छोटे से कॉटेज वाले घर में पहुंच गई। सबसे पहले उसने मिनी स्कर्ट को हटाकर अपनी आराम वाली कुर्ती–जींस पहन ली। उस स्कर्ट में वो इतना अनकंफर्टेबल महसूस कर रही थी कि खुद को आईने में देखना भी मुश्किल लग रहा था। वो वैसे भी कभी इतनी बोल्ड नहीं रही… पता नहीं कैसे अविनाश के सामने उसे खुद को स्ट्रॉन्ग दिखाने की इतनी टेंशन हो गई थी।
दिल तो उसका रो-रो कर एक ही बात कह रहा था। वो एक ऐसे इंसान से अपने दुःखों का सैलाब क्यों बताएं जिसे कोई फर्क नहीं पड़ता वो जिए चाहे मारे..
अवंतिका ने गहरी सांस ली। “अब नहीं… अब कुछ नहीं बताऊँगी उसे। मेरे दुखों की कहानी सुनकर उसे क्या फ़र्क पड़ेगा…” यही सोचते हुए उसने आँखें बंद कीं और एक पेन-किलर खा ली।
अविनाश आज उसके साथ इतना वाइल्ड था… ऊपर से ये उसका फर्स्ट टाइम… दर्द उसके बस से बाहर हो रहा था। पूरा शरीर जैसे टूटा हुआ लग रहा था। आँखों के कोने से दो-तीन आँसू टपक भी गए, पर उसने जल्दी से पोंछ लिए। वो खुद को टूटता हुआ दिखाना नहीं चाहती थी।
उसी समय बाहर से किसी के कदमों की आवाज आई।
“दीदी… आप नाइट में आई क्यों नहीं? मैं कितनी देर तक आपका वेट करती रही…” अंशिका कमरे में झांकते हुए बोली।
अवंतिका ने झट से अपना चेहरा नॉर्मल किया और उसकी तरफ देखते हुए बोली “अरे… बताया था ना, मैं लेट नाइट नहीं आ पाऊंगी। नई पार्ट-टाइम जॉब मिली है, तो टाईम थोड़ा गड़बड़ रहता है। फिर देर हो गई तो मैं अपनी फ्रेंड के घर पर ही रुक गई… उसका घर वहीं पास में है।”
उसने बहाना तो जैसे-तैसे बोल दिया, पर उसे डर था कि अंशिका कहीं उसके चेहरे की हालत पढ़ ना ले।
अंशिका, जो अभी बस 16 साल की थी और 10th में पढ़ती थी, मासूम सी, बिल्कुल अवंतिका का छोटा वर्ज़न लगती थी। वही चेहरे की कट, वही आँखें, बस थोड़ी छोटी, प्यारी और चुलबुली। “ओके दीदी, मैं अभी रेडी होकर आती हूँ,” अंशिका ने कहा। “मॉम से मिलने के बाद मैं स्कूल चली जाऊंगी। आपको भी तो कॉलेज जाना होगा, ना?”
अवंतिका ने थोड़ा गहरी सांस लेकर खुद को संभाला और बोली “हाँ, मैं भी निकलूँगी। तू पहले जल्दी से रेडी हो जा।”
अंशिका मुस्कुराते हुए बाहर चली गई। जैसे ही दरवाज़ा बंद हुआ… अवंतिका ने फिर से हाथ अपना पेट पर रखा और धीमे से झुक गई दर्द अभी भी कम नहीं हुआ था।
थोड़ी देर बाद दोनों तैयार हो गए। अवंतिका ने अपनी वही लॉन्ग कुर्ती और जींस पहन रखी थी। बाल हल्के-से खुले थे और कंधे पर उसका लॉन्ग बैग था। दर्द अभी भी था, पर उसने इसे चेहरे पर आने नहीं दिया।
अंशिका अपनी स्कूल ड्रेस में थी बाल पोनीटेल में बंधे हुए,
पीठ पर बैग, चेहरे पर मासूम-सी मुस्कान… वो उतनी ही प्यारी और एडोरेबल लग रही थी, जैसे हमेशा लगती थी।
दोनों रिक्शा लेकर सिटी हॉस्पिटल पहुँचे। सावित्री जी पिछले कुछ समय से एक सीरियस बीमारी से जूझ रही थीं।
उन्हें एक्यूट हार्ट वाल्व फेलियर था। डॉक्टरों ने साफ कह दिया था। सर्जरी तुरंत करानी पड़ेगी… वरना रिस्क बहुत ज्यादा है।
यही वो वजह थी जिसने अवंतिका को तोड़ दिया।
उसे वो रास्ता चुनना पड़ा…वो रास्ता, जिसे छूने तक का उसने कभी सोचा नहीं था। अपने शरीर को बेचने का फैसला उसके अंदर का हर हिस्सा तोड़ रहा था। कॉफी शॉप की नौकरी से सिर्फ घर चलता था… मॉम को ऑपरेशन इंपॉसिबलथा। माँ की जान उसके लिए सबसे ऊपर थी।
बस इसलिए उसने खुद को मजबूरी में धकेल दिया।
वार्ड की तरफ जाते हुए उसकी चाल थोड़ी डगमगाई, दर्द फिर से उभर आया… पर उसने खुद को कसकर संभाल लिया। कमरे में दाखिल होते ही माँ गहरी नींद में थी।
उनका चेहरा पहले से ज्यादा कमजोर दिख रहा था।
अवंतिका और अंशिका दोनों पास जाकर खड़े हो गए।
कुछ सेकंड बाद सावित्री जी की आँखें धीरे-धीरे खुलीं।
उन्होंने दोनों को देखा और हल्का-सा मुस्कुराईं। “अरे… तुम दोनों आ गए? मैं कब से तुम दोनों का ही इंतज़ार कर रही थी।”
अंशिका जल्दी से उनके पास जाकर बैठ गई। उसने अपना बैग साइड में रखा और मम्मी का हाथ पकड़ लिया। “मॉम… अब कैसा लग रहा है? आप थोड़ी ठीक महसूस कर रही हो?” सावित्री जी ने प्यार से अंशिका की उँगलियाँ दबाईं।
“मैं ठीक हूँ, अशू। तू बता, पढ़ाई कैसी चल रही है?”
अंशिका तुरंत गर्व से बोली “मॉम, आप मेरी पढ़ाई की टेंशन मत किया करो। मैं अपने क्लास की टॉपर हूँ।”
सावित्री जी हल्का-सा मुस्कुराईं… पर उनकी आँखों के अंदर की डर अभी भी साफ झलक रहा था। अपने दोनों बच्चों का भविष्य… उन्हें छोड़कर जाने का ख्याल उन्हें अंदर तक हिला देता था। अवंतिका ने अपने दर्द को छुपाते हुए चेहरे पर हल्की मुस्कान लाई। “आज शाम आपकी सर्जरी हो जाएगी।ज्ञमैंने पैसे डिपॉज़िट कर दिए हैं।”
ये सुनते ही सावित्री चौक गईं। अंशिका भी एकदम खामोश हो गई। क्योंकि उन्हें पता था इतने पैसों का बंदोबस्त रातों-रात होना आसान नहीं। सावित्री जी हैरानी से बोलीं—
“पैसे डिपॉज़िट कर दिए? लेकिन इतने सारे पैसे आए कहाँ से? अवि बेटा… मैंने कहा था ना कि तुम्हें कुछ नहीं करना।
तुमने क्या किया? कहीं तुम—”
इससे पहले कि वो वाक्य पूरा कर पातीं, अवंतिका जल्दी से बोल पड़ी— “मम्मी, प्लीज। जैसा आप सोच रही हैं वैसा कुछ भी नहीं है। मैंने लोन लिया है। और मैं जल्दी चुका दूँगी। एक और पार्ट टाइम जॉब भी कर रही हूँ। लोन भी कम अमाउंट में मिल गया था… इसलिए ले लिया। आप टेंशन मत लो, ठीक है?”
सावित्री बेचैनी में बोलीं “पर बेटा, मैं नहीं चाहती तुम मेरे ऊपर इतना खर्च करो… मुझे नहीं लगता मैं बच पाऊँगी।
तुम्हें अपने और अपनी बहन का ख्याल रखना है। अगर मैं चली गई… तो अंशिका की ज़िम्मेदारी तुम्हारे ऊपर होगी।
तुम्हारे पापा भी चले गए… और अब मैं भी—”
“मम्मी!” अंशिका की आँखें भर आईं। “प्लीज ऐसी बातें मत करो। आपको कुछ नहीं होगा। आप ठीक हो जाओगी।
और हम तीनों साथ रहेंगे। फिर से ऐसी बातें की ना… तो मैं आपसे बात नहीं करूँगी।”
अंशिका सीधे माँ से जाकर चिपक गई। उसकी मासूमियत देखकर सावित्री की आँखें नम हो गईं। दूसरी तरफ से अवंतिका भी माँ को पकड़ लेती है और कहती है। “मम्मी, आप कहीं नहीं जा रही हो। हम तीनों साथ रहेंगे। हम सब ठीक हो जाएगा।”
सावित्री ने दोनों बेटियों के गाल सहलाए और बोलीं“अच्छा बाबा, कहीं नहीं जा रही मैं। पर अगर तुम लोग यहीं बैठे रहे तो तुम दोनों जरूर लेट हो जाओगे।”
अंशिका और अवंतिका तुरंत पीछे हटती हैं,अपनी आँखों के आँसू पोंछती हैं और हल्की मुस्कान के साथ माँ को देखती हैं। अवंतिका बोली “मम्मी, मैं शाम को शायद ना आ पाऊँ।
न्यू पार्ट टाइम जॉब शुरू किया है… अगर लेट गई तो प्रॉब्लम हो जाएगी। अंशिका तुम आ जाना, ठीक है?
सर्जरी जब शुरू हो तब तुम यहाँ रहना।”
अंशिका ने तुरंत कहा—“हाँ दीदी, आप टेंशन मत लो… मैं आ जाऊँगी।”
लेकिन सावित्री की चिंता बढ़ गई। वो अवंतिका की तरफ देख कर बोलीं—“तू कौन-सी पार्ट टाइम जॉब कर रही है अब?”
अवंतिका एक सेकंड रुक गई। उसे समझ नहीं आ रहा था क्या बोले। लेकिन अगले ही पल उसने खुद को सम्हालते हुए कहा “माँ, वो… एक होटल में वेटर का पार्ट टाइम जॉब मिला है। बस वही। आप बिल्कुल टेंशन मत लेना।
मैं अपनी पढ़ाई पर भी ध्यान दे रही हूँ।”
सावित्री की आँखें भर आईं। “मेरी बच्ची… इतनी छोटी उम्र में क्या-क्या झेलना पड़ रहा है तुम्हें। भगवान जल्दी से मुझे ठीक कर दे… बस उसके बाद सब ठीक हो जाएगा।”
अंशिका ने बैग उठाया और बोली “देखना मम्मी… सब कुछ ठीक होगा। चलो दीदी, चलते हैं। बाय मम्मी!”
औरफिर दोनों धीरे-धीरे वार्ड से निकल गईं। सावित्री जी उन दोनों को जाते हुए देखती रहीं… उनकी आँखों में प्यार भी था… और डर भी।
वहीं दूसरी तरफ…
अविनाश अपने केबिन में बैठा था। व्हाइट शर्ट, ब्लैक कोट, ब्लैक टाई, लेदर शूज़… और उसका वो खतरनाक सा हैंडसम चेहरा सचमें कोई भी उसे एक बार देख ले तो नज़र हटाए बिना ना रह पाए। उसके केबिन की विंडो से पूरा शहर नीचे दिखता था। एकदम ड्रीमी सा व्यू… जैसे किसी ड्रीमकंट्री की बिल्डिंग में बैठा हो।
पर उसका दिमाग पूरा उलझा हुआ। अवंतिका की बातें बार-बार उसके कानों में गूंज रही थीं। क्या वो अभी किसी और क्लाइंट के साथ होगी? क्या सच में वो किसी और के साथ…? उसकी मुठ्ठियाँ कस गईं। और गुस्से में उसने हाथ टेबल पर दे मारा। “व्हाट द हेल हो गया है मुझे…? मैं उस ब्लडी बिच के बारे में क्यों सोच रहा हूँ? वो कुछ भी करे, किसी के साथ भी चले जाए… मुझे उससे क्या फर्क पड़ता है? क्यों वो बार-बार दिमाग में आ रही है? क्यों मैं उसके बारे में इतना सोच रहा हूँ? अखिर मुझे हो क्या गया है… अविनाश मल्होत्रा को? एक मामूली सी लड़की के लिए मैं ऐसे क्यों बिहेव कर रहा हूँ?”
वह खुद से ही नाराज़ था। जैसे खुद को समझाने की कोशिश कर रहा हो और खुद ही फेल भी हो रहा हो। तभी उसका फोन वाइब्रेट हुआ। स्क्रीन पर नंबर देखते ही उसका मूड और भी खराब हो गया। आँखें सिकुड़ गईं… जबड़ा भी कस गया।
उसने कॉल उठाई। दूसरी तरफ से एक्साइटमेंट से भरी आवाज़ आई। “अवि, तुम्हें याद तो है ना? आज हमारी इंगेजमेंट है। आई नो तुम बिजनेस मीटिंग में बिजी थे इसीलिए मैंने रिंग सेलेक्ट कर ली है। मैंने सब कुछ देख लिया है। बस टाइम पर आ जाना, ठीक है?”
स्नेहा थी। वही लड़की जिसके साथ आज उसकी इंगेजमेंट थी। ये रिश्ता प्यार-व्यार कुछ नहीं था। दोनों की फैमिली, दोनों के स्टेटस सब मैच करता था। इसलिए उन्होंने डेट भी किया और शादी की भी प्लानिंग थी।
लेकिन अभी। अविनाश का दिमाग किसी और से भरा हुआ था। उसने कड़क आवाज़ में कहा— “I know that. मुझे बार-बार याद दिलाने की ज़रूरत नहीं है।”
स्नेहा हँसते हुए बोली “हां पता है, तुम इतनी इंपोर्टेंट डे थोड़ी भूल सकते हो..? मुझे तो बस आंटी ने कहा था remind करने को…”
अविनाश ने बिना दूसरा शब्द बोले कॉल काट दिया। स्नेहा को फर्क नहीं पड़ा। वो अविनाश के ठंडे रवैये की आदत डाल चुकी थी। वो जानती थी। उसे इन सब चीज़ों से कोई मतलब नहीं। न रोमांस… न इमोशन्स… बस काम।
बस बिज़नेस।
कॉल कट होते ही अविनाश फिर से उसी टेंशन में डूब गया— “No… never. वो किसी और के पास नहीं जा सकती।
उसे मेरे पास ही आना होगा।”
उसकी आँखों में कुछ तो था पॉज़ेसिवनेस? गुस्सा?
या कुछ ऐसा… जो वो खुद भी समझ नहीं पा रहा था।
To be Continue…
🧁✨ Aaj ka chapter kaisa laga, Lovelies?
Kaun sa moment aapko sabse zyada cute laga—
the little spark… the shy glance… ya woh soft sa pull? (˶ᵔ ᵕ ᵔ˶)💞
🍬💌 Comments me zaroor batana,
kyunki aapka ek chotu sa word bhi
mujhe poora din teddy-bear jaise soft bana deta hai (๑˃ᴗ˂)ﻭ



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